दैनिक रुड़की (फिरोज खान)::
मंगलौर। शहादत की जो मिसाल हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में पेश की उसकी नजीर कयामत तक नहीं मिल पाएगी क्योंकि उनके द्वारा केवल किसी धर्म, समुदाय विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति की रक्षा के लिए अपनी वह अपने साथियों की कुर्बानी राहे खुदा ने पेश की गई थी। यही वजह है कि 1400 वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी इमाम हुसैन की शहादत उसी प्रकार से याद की जाती है जैसे ही ऐसा सानेहा आज ही गुजरा हो।
उक्त विचार नगर के मोहल्ला पठानपुरा स्थित है बड़े इमामबाड़े पर चेहलुम की मुख्य मजलिस को संबोधित करते हुए मुस्लिम धर्मगुरु डॉ मौलाना सय्यद काजिम मेहदी उरूज जौनपुरी ने व्यक्त किये। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन किसी धर्म विशेष, जाति विशेष या समुदाय विशेष के रहनुमा नहीं है बल्कि इमाम हुसैन में सभी धर्मों के लोग आस्था रखते हैं। इमाम हुसैन के दर पर सब धर्मों के लोग आकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं यह इमाम हुसैन की सबसे बड़ी जीत है। इंसानियत की रक्षा के लिए जो कुर्बानी उनके द्वारा कर्बला के मैदान में दी गई थी वह आज इस रूप में देखने को मिलती है कि उनके दर पर सभी धर्मों के लोग पहुंचते हैं तथा अपने अपने अंदाज में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
उन्होंने कहा कि कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की जंग के इरादे से नहीं गए थे बल्कि उस वक्त के जालिम शासक यजीद द्वारा ऐसा माहौल बना दिया गया था कि जिससे इंसानियत शर्मसार हो रही थी वह दीन ए इस्लाम के साथ-साथ इंसानियत को मिटाने पर आमादा हो गया था यही कारण था कि इमाम हुसैन में उसकी अधीनता स्वीकार न कर उसके खिलाफ आवाज बुलंद कर यह बताया कि जालिम कितना भी ताकतवर क्यों न हो
उसके आगे कभी सिर नहीं झुकाना चाहिए बल्कि उसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी चाहिए भले ही अपने प्राणों की आहुति क्यों न देनी पड़े। हजरत इमाम हुसैन ने भी यही किया जालिम के आगे सिर नहीं झुकाया बल्कि अपनी कुर्बानी पेश कर दी उसी कुर्बानी का परिणाम है कि आज दुनियां में इंसानियत बाकी है, दीन ए इस्लाम बाकी है। इसीलिए हजरत इमाम हुसैन को इंसानियत का अलंबरदार कहा जाता है। इमाम हुसैन के बताए मार्ग पर चलकर आज दुनिया में फैले आतंकवाद से लड़ा जा सकता है।
इमाम हुसैन ने जो पैगाम कर्बला में दिए उस पैगाम में से सबसे बड़ा पैगाम यह है इंसान इंसान से मोहब्बत करे, हिंसा त्याग कर अहिंसा का रास्ता अपनाए, समाज में सद्भाव तथा दोस्ती का वातावरण बने, समाज के अंदर मोहब्बत का सिक्का चले जिससे हर तरफ मोहब्बत का परचम लहराता नजर आये। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन के ऊपर यजीदी फौज का हमला नहीं था बल्कि दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी द्वारा किया गया हमला उस छोटे से लश्कर पर था जिसमें तादाद केवल 72 थी और उनमें भी कुछ बुजुर्ग थे,
कुछ बच्चे, तो कुछ जवान लेकिन यजीदी फौज में लाखों की संख्या थी इसे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला कहा जा सकता है। बड़े इमामबाड़े से चेहलुम का मुख्य मातमी जुलूस शुरू हुआ बाबुल मुराद पहुंचकर यहां से अजादार जुलूस में शामिल हो गए यह जुलूस बारगाह ए जैनबिया पहुंचा। दरबारे हुसैन से बरामद जुलूस भी यहीं आकर इस जुलूस में शामिल हो गया।
यहां से संयुक्त रूप से यह जुलूस चुंगी नंबर तीन पर पहुंचा जहां पर अजादारों ने जंजीर का मातम कर अपने शरीर लहूलुहान कर लिए। जिसके बाद लंढौरा रोड, शहर पुलिस चौकी, मोहल्ला टोली आंशिक पठानपुरा होते हुए यह जुलूस थाना बाईपास मार्ग स्थित करबला पहुंच बाद में पठानपुरा की भीतरी भाग को होता हुआ बड़े इमामबाड़े पर आकर संपन्न हुआ।
जुलूस का संचालक बड़े इमामबाड़े के प्रबंधक अमीर हैदर जैदी, अली मेहंदी जैदी, मोहर्रम अली जाफरी, रजब अली आरफी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। जुलूस में मुख्य रूप से कांग्रेस नेता एवं समाजसेवी सैयद अली हैदर जैदी, रियाज़ हसन जैदी, वफा आब्दी, हसनैन रजा जैदी, शबाब मेहंदी, राजू नकवी, कौसर अब्बास, फहीम अब्बास जैदी,
मोहम्मद रौनक जैदी, मीर जमीर, दानिश जैदी, अब्बास हैदर, शाकिर मंगलौरी, रिहान हैदर, नूर अली, शमशुल हसन, मोहम्मद अली जाफरी, नफीस हैदर, मोहम्मद आलम, नजर अब्बास नकवी, विशाल हैदर, नसीम हैदर आदि भारी संख्या में लोग मौजूद रहे। जुलूस में सुरक्षा की व्यापक प्रबंध रहे प्रभारी निरीक्षक महेश जोशी एवं शहर चौकी प्रभारी नवीन नेगी पुलिस तथा पीएसी के जवानों के साथ जुलूस की सुरक्षा में तैनात रहे।