दैनिक रुड़की (इकराम अली)::
पिरान कलियर। साबिर पाक के सालाना उर्स में आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। देश-विदेश से आए जायरीन जहां अपने-अपने तरीक़े से दरगाह पर हाज़िरी दे रहे हैं, वहीं दिल्ली से आए सय्यद गुलाम ख़्वाजा चिश्ती साबरी अपने अनूठे नज़राने से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। वे इस बार अपने हाथों से बनाई गई चार फीट लंबी मोमबत्ती लेकर उर्स में पहुंचे हैं।
दरगाह साबिर पाक के सालाना उर्स की रौनक बढ़ने लगी आज 11 तारीख है और छोटी रोशनी मनाई जा रही है,पूरी दरगाह शरीफ को लाईट से सजाया गया हैं।वही इस बीच सय्यद गुलाम ख़्वाजा चिश्ती साबरी पिछले 11 वर्षों से लगातार बड़ी मोमबत्ती बनाकर उर्स में ला रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने ढाई से तीन फीट लंबी मोमबत्ती बनाई थी, लेकिन इस बार उन्होंने इसे और बड़ा आकार देकर चार फीट की मोमबत्ती तैयार की है। उनका कहना है कि यह मोमबत्ती करीब एक सप्ताह तक लगातार रोशनी देती रहेगी और उर्स की रौनक बढ़ाएगी।उन्होंने बताया कि 11 साल पहले उनके मन में ख्याल आया कि हज़रत साबिर पाक के उर्स में रोशनी के लिए बड़ी मोमबत्ती बनाई जाए।
तभी से वह हर साल दो से तीन दिन की मेहनत से मोमबत्ती तैयार करते आ रहे हैं। छोटी-छोटी मोमबत्तियों को पिघलाकर प्लास्टिक पाइप में साँचा बनाकर और उसमें मोटा कॉटन का धागा डालकर यह विशेष मोमबत्ती तैयार की गई।उर्स में इस बड़ी मोमबत्ती के आगमन को लेकर जायरीनों में भी खासा उत्साह देखने को मिला। मोमबत्ती की रौशनी और सुगंध से दरगाह क्षेत्र का माहौल और भी रूहानी हो गया है। दूर-दराज़ से आए जायरीन इसे आस्था की मिसाल बताते हुए तस्वीरें खींचते हुए दिखाई दिए।
सय्यद गुलाम ख़्वाजा चिश्ती साबरी कहते हैं कि यह परंपरा उनके लिए केवल आस्था ही नहीं बल्कि मोहब्बत और सुकून का ज़रिया भी है। उनका मानना है कि हज़रत साबिर पाक के दरबार में रोशनी करना उनके जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है।उन्होंने बताया कि सूफी राशिद उनके( खलीफा) गुरु है।
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