दैनिक रुड़की......
रुड़की। सेना की वीरता के साथ-साथ आम नागरिकों की अदृश्य परंतु निर्णायक भूमिका को सलाम !इतिहास गवाह है कि कोई भी लड़ाई जन चेतना और सहयोग के बिना नहीं जीती जा सकती। आज लड़ाई केवल सीमाओं तक सीमित नहीं। नागरिकों का डिजिटल समर्थन भी एक फ्रंट बन गया है। उनकी पोस्ट, प्रार्थनाएँ, और फंडिंग—ये सब नई युद्ध रणनीति का हिस्सा हैं। साहित्यकार धूमिल ने लिखा था “एक आदमी कविता में देश को बचाता है, दूसरा बारूद में।”आज यह पंक्ति सजीव होती प्रतीत होती है। ऑपरेशन सिंदूर पर आधारित कविताएं, स्केच, लोकगीत और पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
वास्तव में "युद्धकाल में समाज प्रणेता और दर्शक—दोनों होता है। ऑपरेशन सिंदूर ने दिखा दिया कि भारत का आम नागरिक अब केवल समाचार का उपभोक्ता नहीं, संवेदना और सहभागिता का सर्जक है।
ऑपरेशन सिंदूर में भी नागरिकों ने सेनाओं के लिए ज़मीन तैयार की।
एक और सेनाएँ मोर्चे पर लड़ती हैं, तो दूसरी ओर देश का हर आम नागरिक अपने तरीके से उस लड़ाई में शामिल होता है—कभी रोटियों के थाल लेकर, कभी प्रार्थनाओं की माला बनकर, और कभी आंसुओं के धुंधलके में भी उम्मीद की मशाल थामकर।"
ऑपरेशन सिंदूर, जो हाल ही में भारतीय सैन्य इतिहास का एक और सुनहरा अध्याय बन गया, न केवल हमारी सशस्त्र सेनाओं की रणनीतिक दक्षता और साहस का परिचायक है, बल्कि उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आम नागरिक आज सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि रणनीति के सहभागी बन चुके हैं।
आज जरूरत है कि राष्ट्र का हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी को समझे सैनिक मोर्चे के पीछे खड़े होकर अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार इस मोर्चे का अप्रत्यक्ष हिस्सा बने।
ऑपरेशन सिंदूर, जो जन-जन के मन को संबल देने के लिए और पुराने आतंकी जहर को शरीर से बाहर निकालने के लिए नितांत आवश्यक था।
दुश्मन की घुसपैठ को रोकने और रणनीतिक पहाड़ी चौकियों को पुनः प्राप्त करने हेतु संचालित किया गया, उसमें सेना के साथ-साथ नागरिक समाज की अघोषित मगर अहम भूमिका सुनिश्चित है । युद्ध की परिस्थितियों में सीमा से सटे गांवों के लोग न केवल सेना को खुफिया जानकारी देते हैं बल्कि अस्थायी शरणस्थल और खाद्य सामग्री का भी सबब बनते हैं।
कारगिल से सिंदूर तक: एक नागरिक चेतना की यात्रा
1999 के कारगिल युद्ध में हमने देखा था कि स्कूली बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक ने सैनिकों को पत्र, ऊनी वस्त्र और प्रार्थनाएँ भेजीं। आज, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान डिजिटल मीडिया, सोशल प्लेटफॉर्म्स और नागरिक संगठनों के माध्यम से राष्ट्र के समर्थन की बयार और तेज़ रही।
ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों में महिलाओं की भूमिका भी निर्णायक रही है—चाहे वह फ़ील्ड में मेडिकल सपोर्ट हो, या सीमाओं पर तैनात बेटों के लिए मानसिक संबल। एक माँ ने पत्र में लिखा—
"तू सीमा पर लड़ रहा है, बेटा, मैं यहाँ प्रार्थनाओं से तेरी ढाल बन रही हूँ।"
ऑपरेशन सिंदूर ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया है कि जब सैनिक मोर्चे पर हों, तब नागरिक भी युद्धभूमि से कम नहीं होते। उनके हौसले, सहयोग और समर्पण से ही राष्ट्र की जीत सुनिश्चित होती है।
यह ऑपरेशन केवल सैनिकों की विजय नहीं, पूरे देश की सामूहिक चेतना की जीत है—एक ऐसा युद्ध, जिसमें हर नागरिक सैनिक था, और हर सैनिक नागरिक का बेटा।
लेखिका : डॉ. भारती शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर अंग्रेजी विभाग एस०एस०डी०पी०सी० गर्ल्स पीजी कॉलेज रुड़की....
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