दैनिक रुड़की (योगराज पाल)::
रुड़की। मदरहुड़ विश्वविद्यालय, रुड़की के विधि संकाय द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी "डिजिटल युग में मानवाधिकार के रूप में सामाजिक-आर्थिक न्याय:आगे की चुनौतियों पर पुनर्विचार" विषय का आज सफलतापूर्वक समापन हुआ।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि जिला एवं सत्र न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, हरिद्वार, नरेंद्र दत्त ने कहा कि  डिजिटल डिवाइड न्याय तक पहुँचने का एक माध्यम है , साथ ही उन्होंने, "ई-कोर्ट्स (e-Courts) व ई- फाईलिंग और डिजिटल रिकॉर्ड्स से न्याय प्रक्रिया को सरल और अधिक पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीकी उन्नति के कारण कोई भी नागरिक न्याय से वंचित न रह जाए और इस तकनीक का दुरुपयोग ना हो सके।
साथ ही हमें न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करना होगा ताकि डिजिटल परिवर्तन का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुँच सके। उन्होंने शिक्षाविदों से भी आग्रह किया कि वे विधि के छात्र-छात्राओं को भी डिजिटल साक्षरता को अपनाएं में सहयोग करें ताकि समाज में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाई जा सके और अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुँचाने में उनकी सक्रिय भागीदार बनें।राष्ट्रीय संगोष्ठी के अध्यक्ष, मदरहुड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० (डॉ०) नरेन्द्र शर्मा ने दो दिनों के सफल विचार-विमर्श का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि, "यह संगोष्ठी केवल चर्चा का मंच नहीं थी, बल्कि डिजिटल युग में न्याय और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने का एक सामूहिक संकल्प था।
 हमने पाया है कि सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिए डेटा एकत्रित करना, AI एथिक्स और डिजिटल कौशल का समन्वयक रूप से प्रयोग किया जाना आवश्यक है। हमारा विश्वविद्यालय शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से डिजिटल समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को उनके सक्रिय योगदान और ज्ञानवर्धक चर्चाओं के लिए आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया।
अति विशिष्ट अतिथि चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट संदीप कुमार ने कानूनी जागरूकता , साक्षरता, और न्याय के सूलभ और आसान उपलब्धता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निचली अदालतें और मध्यस्थता केंद्र (mediation centers) डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके छोटे और त्वरित मामलों में तत्काल राहत प्रदान कर सकते हैं, जिससे सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सीधा लाभ मिल सकता है।
सिविल जज सीनियार डिवीजन एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हरिद्वार सिमरनजीत कौर, ने कहा कि हमारे द्वारा निरंतर यहीं प्रयास बना रहता है कि अति पिछड़े, आदिवासी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क विधिक सहायता ( फ्री लीगल- एड) उपलब्ध हो और साथ ही यह कार्य डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराया जा सके और हमारे द्वारा यह सामाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में सबसे बड़ा कदम साबित हो।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के सचिव एसोसिएट प्रोफेसर (डॉ०) हरिचरण सिंह यादव ने दो दिवसीय राष्ट्रीय के विषय में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करते हुए कहा कि हमारे यहां कुल 17 राज्यों से लगभग 550 शोधार्थियों ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभा किया जो विधि संकाय मदरहुड विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफेसर (डॉ०) शैलेन्द्र ने अपने समापन सत्र में डिजिटल असमानता (Digital Divide) को भरने के लिए तत्काल और वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने नीति निर्माताओं से AI और डेटा उपयोग पर नैतिक और समावेशी नियम बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि "डेटा संग्रह आधुनिक युग में अत्यंत आवश्यक है, लेकिन इसका उपयोग इस तरह से होना चाहिए कि यह शक्ति का केंद्रीकरण न बने, बल्कि यह न्याय का विकेंद्रीकरण करे।"
अन्य विशिष्ट अतिथियों ने भी अपने विशिष्ट क्षेत्रों के अनुभवों को साझा किया उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, देहरादून से पधारे प्रोफेसर (डॉ०) अनिल कुमार दीक्षित ने शैक्षणिक संस्थाओं की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि पाठ्यक्रम में डिजिटल एथिक्स (नैतिकता), साइबर कानून और प्रैक्टिकल केस स्टडीज को शामिल करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी को केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि डिजिटल चुनौतियों का व्यावहारिक ज्ञान सिखाया जाना चाहिए।
केंद्रीय विश्वविद्यालय, हेमवती नंदन बहुगुणा, गढ़वाल से पधारे (डॉ०) सुधिर कुमार चतुर्वेदी ने अपने शोध के निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए बताया कि कैसे डिजिटल तकनीकें गरीबों के लिए वित्तीय समावेशन और सरकारी योजनाओं (जैसे DBT) तक पहुँच को बेहतर बना सकती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकारी योजनाओं की सफलता के लिए तकनीकी पहुँच के साथ-साथ आवश्यक प्रशिक्षण पर भी समान ध्यान देना ज़रूरी है।
विभिन्न स्थानों से पधारे अन्य विशिष्ट अतिथियों , प्रोफेसर (डॉ०) ए० बी० जायसवाल, प्रोफेसर (डॉ०) ए० के० भट्ट, और (डॉ०) संजय कुमार बरनवाल ने क्रमशः प्रशासन में तकनीकी एकीकरण, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट बुनियादी ढांचे के विस्तार, और व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा के संदर्भ देते हुए, सामाजिक-आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में व्यावहारिक सुझाव दिए।शोध सत्रों में प्रस्तुत मुख्य निष्कर्ष संगोष्ठी में देश भर के शोधार्थियों ने 550 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए। इनमें से प्रमुख निष्कर्षों को निम्नलिखित तीन मुख्य विषयों के अंतर्गत संक्षेपित किया गया।पहला डिजिटल प्राइवेसी और डेटा गवर्नेंस, शोधकर्ताओं ने डेटा लीक और दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त डेटा संरक्षण कानूनों और डिजिटल अधिकारों के प्रभावी प्रवर्तन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
 दूसरा रोजगार का भविष्य और कौशल विकास, कई पत्रों में यह दर्शाया गया कि AI और ऑटोमेशन के कारण पारंपरिक नौकरियों में आने वाली गिरावट का मुकाबला करने के लिए डिजिटल कौशल में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है, ताकि सभी आयु वर्ग के लोगों को नई अर्थव्यवस्था में समायोजित किया जा सके।और तीसरा समावेशी तकनीकी मॉडल, कुछ शोध पत्रों ने गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास के लिए ओपन-सोर्स तकनीकों और क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री के विकास के मॉडल प्रस्तुत किए।
 विश्वविद्यालय के विधि संकाय के द्वारा इस संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया, जिसने डिजिटल युग में सामाजिक-आर्थिक न्याय को मानवाधिकार के रूप में स्थापित करने के लिए निरंतर सामूहिक प्रयास करने का संकल्प लिया।राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक एवं विधि संकाय के अधिष्ठाता प्रो० (डॉ०) जयशंकर प्रसाद श्रीवास्तव ने सत्र के अनंत में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों और समस्त शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए इस कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर कहा, कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मदरहुड विश्वविद्यालय रूड़की विधि संकाय भविष्य में भी इस प्रकार की राष्ट्रीय संगोष्ठीयो का आयोजन करता रहेगा । इस दौरान विश्वविद्यालय के सभी प्रमुख अधिकारीगण, संकायों के अधिष्ठाता, अध्यापकगण उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गान से किया गया, इस अवसर पर  विश्वविद्यालय के समस्त संकायों के अधिष्ठाता और विभागध्यक्ष तथा विधि संकाय के समस्त अध्यापकगण उपस्थित रहें। इस सत्र की व्यवस्था में सहायक अध्यापकगण प्रोफेसर (डॉ०) नीरज मलिक, डॉ० नलनीश चंद सिंह, डॉ० विवेक सिंह, डॉ० सन्दीप कुमार, डॉ० विकास तिवारी,सतीश कुमार, विवेक कुमार, अमन सोनकर ,मधुर स्वामी, सुजीत कुमार तिवारी ,डां० जुली गर्ग, रेनू तोमर, अनिंदिता चटर्जी, समिधा गुप्ता, तथा श्रीमति व्यंजना सैनी आदि का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य स्नेहा भट्ट द्वारा किया गया।
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